सम्भाषणम्:संस्कृतभाषा/वाक्यरचना
गुरवे नमोऽस्तु
डा. विष्णु नारायण तिवारी (आचार्यः)
गरीयसी यस्य गुर्वी गरिष्ठा, ज्ञानप्रकाषाय तपते सदैव।
ज्ञानी गुणज्ञेषु ज्ञानप्रधाता, तस्मै ‘ग’काराय गुरवे नमोऽस्तु।।1।।
उत्कर्ष-निःश्रेय-विद्याप्रदीप-उत्थानषिष्यस्य यस्य प्रकर्म।
ऊँकारषब्दस्य मध्यस्थिताय, तस्मै ‘उ’काराय गुरवे नमोऽस्तु।।2।।
रामे रमन्ते राजर्षयष्च, राष्ट्रैव रामं मनुते गुरुर्वा।
रुष्टाय षिष्याय तुष्टीकरोति, तस्मै ‘र’काराय गुरवे नमोऽस्तु।।3।।
उन्नत्यसाध्या गतिरूर्ध्वरेता, उणादिसूत्राणि सरलीकरोति।
ऊर्जस्वला यस्य प्रज्ञा तथा च, तस्मै ‘उ’काराय गुरवे नमोऽस्तु।।4।।
गुरोः सेवा सर्वार्थधर्मः, गुरोः परमं नैवास्ति तत्त्वम्।
गुरोः प्रसादष्च ब्रह्मप्रसादः, तस्मान्नमामो गुरुपादरेणुम्।।5।।
Start a discussion about संस्कृतभाषा/वाक्यरचना
विकिपुस्तकानि की सामग्री को यथासम्भव रूप से सर्वश्रेष्ठ बनाने के लिए लोगों द्वारा जहाँ पर चर्चा की जाती है उन्हें वार्ता पृष्ठ कहा जाता है। संस्कृतभाषा/वाक्यरचना में सुधार कैसे करें, इसपर अन्यों के साथ चर्चा आरम्भ करने के लिए आप इस पृष्ठ को काम में ले सकते हैं।