प्रथमं परिशिष्टम्
'कारिका- प्रतिपाद्यम्
कारिका क्र. | प्रतिपाद्यम् |
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01 | साङ्ख्यशास्त्रारम्भ: किमर्थम्? |
02 | साङ्ख्यशास्त्रारम्भ: किमर्थम्? |
03 | पूर्वतनकारिकायाम् उक्तानां व्यक्त-अव्यक्त-ज्ञपदानाम् अर्था:।(साङ्ख्यशास्त्रे प्रमेयपदार्था: ) |
04 | साङ्ख्यशास्त्रे प्रमाणपदार्था: |
05 | प्रमाणानां लक्षणानि। |
06 | केन प्रमाणेन कस्य प्रमेयस्य सिद्धि: शक्या? |
०7 | प्रत्यक्षप्रमाणस्य मर्यादा:। |
08 | व्यक्त-अव्यक्त-ज्ञपदार्थानां प्रत्यक्षज्ञानं किमर्थं न भवति? अनुमानेन कथं भवति? |
09 | सत्कार्यवाद:।(अव्यक्तस्य सिद्ध्यर्थम्) |
10 | व्यक्ताव्यक्तयो: वैधर्म्यम्। |
11 | व्यक्ताव्यक्तयो: परस्परं साधर्म्यम्। व्यक्ताव्यक्तयो: पुरुषात् वैधर्म्यम्। |
12 | पूर्वतनकारिकायां ‘ ‘ त्रिगुणम् ’ इति पदमस्ति , तस्य विवरणम्। |
13 | त्रिगुणनामानि। तेषां प्रवृत्ति: किमर्थं भवति? |
14 | व्यक्ताद् अव्यक्तस्य सिद्धि:। तस्य अविवेकित्वादिधर्माणां (11 कारिका) च सिद्धि:। |
15 | व्यक्ताद् अव्यक्तस्य सिद्धि:। (अनुमानम् ।) |
16 | अव्यक्ताद् व्यक्तं कथं जायते?(प्रकारद्वयम्) |
17 | अव्यक्तादिपदार्थेभ्य: पुरुष: इति भिन्न: पदार्थ: अस्ति। (पुरुषस्य सिद्धि:।) |
18 | पुरुषबहुत्वस्य सिद्धि:। |
19 | पुरुषस्य धर्मा:। |
20 | चैतन्यं पुरुषे चेत् कर्तृत्वं प्रकृतौ कथम्? इति विरोधस्य समाधानम्। |
21 | सर्गस्य कारणं प्रकृतिपुरुषयो: संयोग:। तस्य संयोगस्य प्रयोजनम्? |
22 | सर्गस्य क्रम: । |
23 | सर्गस्थपदार्थानां क्रमश: वर्णनम् । तत्र प्रथमं बुद्धे: लक्षणम्। |
24 | अहङ्कारलक्षणम्।अहङ्कारात् द्विविध: सर्ग:। |
25 | अहङ्कारात् द्विविध: सर्ग: कथं भवति? |
26 | पञ्च ज्ञानेन्द्रियाणि। पञ्च कर्मेन्द्रियाणि। |
27 | एकादशम् इन्द्रियम्। |
28 | दशानामिन्द्रियाणां वृत्तय: (व्यापारा:।) |
29 | अन्त:करणत्रयस्य वृत्तय:।(व्यापारा:।) |
30 | अन्त:करणत्रयस्य युगपत् क्रमश: च प्रवृत्ति:। |
31 | करणस्य (इन्द्रियस्य) प्रवृत्ति: केन हेतुना भवति? |
32 | करणस्य 13 प्रकारा:, 10 कार्याणि। |
33 | त्रयोदशविधस्य करणस्य उपभेदा:। |
34 | बाह्येन्द्रियाणां विषयानां विवेचनम्। |
35 | त्रयोदशसु इन्द्रियेषु गौणमुख्यविवेक:। |
36 | मन: तथा अहङ्कार: एताभ्यां बुद्धि: प्रधाना। |
37 | बुद्धि: प्रधाना इति एतस्य अधिकं विवरणम्। |
38 | 5 तन्मात्रा: तथा 5 भूतानि।भूतानां त्रय: भेदा:। |
39 | भूतानां त्रय: उपभेदा:।(सूक्ष्मदेह-स्थूलदेह-प्रभूता: ) |
40 | धर्माधर्मादिभावै: युक्तस्य सूक्ष्मदेहस्य विविधेषु स्थूलदेहेषु संसरणम् । |
41 | संसरणं बुद्धे: अथवा सूक्ष्मदेहस्य? (बुद्धि: तथा सूक्ष्मशरीरमिति अनयो: आश्रयाश्रयिभाव:।) |
42 | सूक्ष्मशरीरं किमर्थं स्थूलदेहं धारयति? (निमित्तनैमित्तिकभावानां प्रसङ्गेन) |
43 | निमित्तनैमित्तिकभावा: कुत्र सन्ति? |
44 | निमित्तनैमित्तिकभावानां परस्परं सम्बन्ध:। |
45 | अज्ञानरूपस्य निमित्तस्य (ज्ञानरहितस्य वैराग्य-राग-ऐश्वर्यस्य ) फलस्य वर्णनम्। |
46 | विपर्यय: अशक्ति: तुष्टि: सिद्धि: इति भावा: (कारिका 40 ) बुद्धे: धर्मा:। तेषां 50 भेदा: । |
47 | 50 भेदानां गणनम्। |
48 | विपर्यय: बुद्धे: धर्म: । तस्य भेदा: उपभेदा: च। |
49 | अशक्ति: बुद्धे: धर्म: । तस्या: उपभेदा:। |
50 | तुष्टि: बुद्धे: धर्म: । तस्या: उपभेदा:। |
51 | सिद्धि: बुद्धे: धर्म: । तस्या: उपभेदा:। |
52 | तन्मात्रसर्ग: तथा प्रत्ययसर्ग: (द्विविध: प्रवर्तते सर्ग:।-कारिका 24) उभयो: आवश्यकता। |
53 | प्रत्ययसर्गस्य विवरणं समाप्तम्।इदानीं भूतादिसर्गस्य वर्णनम्। |
54 | भूतादिससर्ग: ऊर्ध्व-मध्य-मूलभेदेन त्रिविध: । |
55 | अयं सर्ग: दु:खमय:। |
56 | पुरुषस्य मोक्षार्थम् अयं सर्ग: प्रकृत्या क्रियते। |
57 | जडा प्रकृति: कथं सर्गं करोति? |
58 | प्रकृति: किमर्थं सर्गं करोति? |
59 | प्रकृति: किमर्थं निवर्तते? |
60 | पुरुषसंयोगेन प्रकृते: न कोऽपि लाभ:। |
61 | एकवारमेकस्मात् पुरुषात् निवृत्ता प्रकृति: पुन: तस्मिन् पुरुषे न प्रवर्तते। |
61 | जगत्कारणविषये अन्येषां मतानि। |
62 | वस्तुत: बन्धमोक्षौ प्रकृते:, न तु पुरुषस्य । |
63 | प्रकृते: बन्ध: कथं भवति मोक्ष: च कथं भवति? |
64 | एतस्य तत्वज्ञानस्य अभ्यासेन तत्त्वसाक्षात्कार:। |
65 | तत्त्वसाक्षात्कारेण प्रक्र्ते: निवृत्ति:। |
66 | एकवारं निवृत्ता प्रकृति: पुन: कथं न प्रवर्तते? |
67 | सम्यग्ज्ञानानन्तरं शरीरस्य का गति:? |
68 | शरीरपाते सति ऐकान्तिकम् आत्यन्तिकं च कैवल्यम्। |
69 | एतत् साङ्ख्यशास्त्रं परमर्षिणा कपिलेन प्रतिपादितम्। |
70 | कपिल: आसुरि: पञ्चशिख: इति शिष्यपरम्परा। |
71 | अस्याम् एव परम्परायाम् अस्ति कारिका-कार: ईश्वरकृष्ण:। |
72 | षष्टितन्त्रे यत् प्रतिपादितं तदेव एतस्मिन् ग्रन्थे प्रतिपादितम्। |