द्वितीयं परिशिष्टम्
साङ्ख्यकारिका अकारादिक्रमेण।
कारिका | क्र. |
---|---|
अतिदूरात्सामीप्यादिन्द्रियघातान्मनोऽनवस्थानात्। | ०७ |
अध्यवसायो बुद्धिर्धर्मो ज्ञानं विराग ऐश्वर्यम्। | २३ |
अन्त:करणं त्रिविधं दशधा बाह्यं त्रयस्य विषयाख्यम्। | ३३ |
अभिमानोऽहङ्कारस्तस्माद् द्विविध: प्रवर्तते सर्ग:। | २४ |
अविवेक्यादे: सिद्धिस्त्रैगुण्यात्तद्विपर्ययेऽभावात्। | १४ |
अष्टविकल्पो दैवस्तैर्यग्योनश्च पञ्चधा भवति। | ५३ |
असदकरणादुपादानग्रहणात्सर्वसम्भवाभावात्। | ०९ |
आध्यात्मिक्यश्चतस्र: प्रकृत्युपादानकालभाग्याख्या:। | ५० |
इत्येष प्रकृतिकृतो महदादिविशेषभूतपर्यन्त:। | ५६ |
उभयात्मकमत्र मन: सङ्कल्पकमिन्द्रियं च साधर्म्यात्। | २७ |
ऊर्ध्वं सत्त्वविशालस्तमोविशालश्च मूलत: सर्ग:। | ५४ |
ऊह: शब्दोऽध्ययनं दु:खविघातास्त्रय: सुहृत्प्राप्ति:। | ५१ |
एकादशेन्द्रियवधा: सह बुद्धिवधैरशक्तिरुद्दिष्टा। | ४९ |
एतत्पवित्रमग्र्यं मुनिरासुरयेऽनुकम्पया प्रददौ। | ७० |
एते प्रदीपकल्पा: परस्परविलक्षणा गुणविशेषा:। | ३६ |
एवं तत्त्वाभ्यासान्नास्मि न मे नाहमित्यपरिशेषम्। | ६४ |
एष प्रत्ययसर्गो विपर्ययाशक्तितुष्टिसिद्ध्याख्य:। | ४६ |
औत्सुक्यनिवृत्यर्थे यथा क्रियासु प्रवर्तते लोक:। | ५८ |
करणं त्रयोदशविधं तदाहरणधारणप्रकाशकरम्। | ३२ |
कारणमस्त्यव्यक्तं प्रवर्तते त्रिगुणत: समुदयाच्च। | १६ |
कारणमीश्वरमेके ब्रुवते कालं परे स्वभावं वा। | ६१अ |
चित्रं यथाश्रयमृते स्थाण्वादिभ्यो विना यथा छाया। | ४१ |
जन्ममरणकरणानां प्रतिनियमादयुगपत्प्रवृत्तेश्च। | १८ |
तत्र जरामरणकृतं दु:खं प्राप्नोति चेतन: पुरुष:। | ५५ |
तन्मात्राण्यविशेषास्तेभ्यो भूतानि पञ्च पञ्चभ्य:। | ३८ |
तस्माच्च विपर्यासात् सिद्धं साक्षित्वमस्य पुरुषस्य। | १९ |
तस्मात्तत्संयोगादचेतनं चेतनावदिव लिङ्गम्। | २० |
तस्मान्न बध्यतेऽसौ न मुच्यते नापि संसरति कश्चित्। | ६२ |
तेन निवृत्तप्रसवामर्थवशात् सप्तरूपविनिवृत्ताम्। | ६५ |
त्रिगुणमविवेकि विषय: सामान्यमचेतनं प्रसवधर्मि। | ११ |
दु:खत्रयाभिघाताद् जिज्ञासा तदपघातके हेतौ। | ०१ |
दृष्टमनुमानमापतवचनं च सर्वप्रमाणसिद्धत्वात्। | ०४ |
दृष्टवदानुश्रविक: स ह्यविशुद्धिक्षयातिशययुक्त:। | ०२ |
दृष्टा मयेत्युपेक्षक एको दृष्टाहमित्युपरमत्यन्या। | ६६ |
धर्मेण गमनमूर्ध्वं गमनमधस्ताद्भवत्यधर्मेण। | ४४ |
न विना भावैर्लिङ्गं न विना लिङ्गेन भावनिर्वृत्ति:। | ५२ |
नानाविधैरुपायैरुपकारिण्यनुपकारिण: पुंस:। | ६० |
पञ्च विपर्ययभेदा भवन्त्यशक्तिश्च करणवैकल्यात्। | ४७ |
पुरुषस्य दर्शनार्थं कैवल्यार्थं तथा प्रदानस्य। | २१ |
पुरुषार्थज्ञानमिदं गुह्यं परमर्षिणा समाख्यातम्। | ६९ |
पुरुषार्थहेतुकमिदं निमित्तनैमित्तिकप्रसङ्गेन। | ४२ |
पूर्वोत्पन्नमसक्तं नियतं महदादिसूक्ष्मपर्यन्तम्। | ४० |
प्रकृतेर्महांस्ततोऽहङ्कारस्तस्माद्गणश्च षोडशक:। | २२ |
प्रकृते: सुकुमारतरं न किञ्चिदस्तीति मे मतिर्भवति। | ६१ |
प्रतिविषयाध्यवसायो दृष्टं त्रिविधमनुमानमाख्यातम्। | ०५ |
प्राप्ते शरीरभेदे चरितार्थत्वात् प्रधानविनिवृत्ते:। | ६८ |
प्रीत्यप्रीतिविषादात्मका: प्रकाशप्रवृत्तिनियमार्था:। | १२ |
बुद्धीन्द्रियाणि चक्षु:श्रोत्रघ्राणरसनत्वगाख्यानि। | २६ |
बुद्धीन्द्रियाणि तेषां पञ्च विशेषाविशेषविषयाणि। | ३४ |
भेदस्तमसोऽष्टविधो मोहस्य च, दशविधो महामोह:। | ४८ |
भेदानां परिमाणात् समन्वयात् शक्तित: प्रवृत्तेश्च। | १५ |
मूलप्रकृतिरविकृतिर्महदाद्या: प्रकृतिविकृतय: सप्त। | ०३ |
युगपच्चतुष्टयस्य तु वृत्ति: क्रमशश्च तस्य निर्दिष्टा। | ३० |
रङ्गस्य दर्शयित्वा निवर्तते नर्तकी यथा नृत्यात्। | ५९ |
रूपै: सप्तभिरेव तु बध्नात्यात्मानमात्मना प्रकृति:। | ६३ |
वत्सविवृद्धिनिमित्तं क्षीरस्य यथा प्रवृत्तिरज्ञस्य। | ५७ |
वैराग्यात्प्रकृतिलय: संसारि भवति राजसाद्रागात्। | ४५ |
शब्दादिषु पञ्चानामालोचनमात्रमिष्यते वृत्ति:। | २८ |
शिष्यपरम्परयागतमीश्वरकृष्णेन चैतदार्याभि:। | ७१ |
सङ्घातपरार्थत्वात् त्रिगुणादिविपर्ययादधिष्ठानात्। | १७ |
सत्त्वं लघु प्रकाशकमिष्टमुपष्टम्भकं चलं च रज:। | १३ |
सप्तत्या किल येऽर्थास्तेऽर्था: कृत्स्नस्य षष्टितन्त्रस्य। | ७२ |
सम्यग् ज्ञानाधिगमाद्धर्मादीनामकारणप्राप्तौ। | ६७ |
सर्वं प्रत्युपभोगं यस्मात्पुरुषस्य साधयति बुद्धि:। | ३७ |
सांसिद्धिकाश्च भावा: प्राकृतिका वैकृतिकाश्च धर्माद्या:। | ४३ |
सात्त्विक एकादशक: प्रवर्तते वैकृतादहङ्कारात्। | २५ |
सान्त:करणा बुद्धि: सर्वं विषयमवगाहते यस्मात्। | ३५ |
सामान्यतस्तु दृष्टादतीन्द्रियाणां प्रतीतिरनुमानात्। | ०६ |
सूक्ष्मा मातापितृजा: सह प्रभूतैस्त्रिधा विशेषा: स्यु:। | ३९ |
सौक्ष्म्यात्तदनुपलब्धिर्नाभावात्कार्यतस्तदुपलब्धे:। | ०८ |
स्वालक्षण्यं वृत्तिस्त्रयस्य सैषा भवत्यसामान्या। | २९ |
स्वां स्वां प्रतिपद्यन्ते परस्पराकूतहेतुकां वृत्तिम्। | ३१ |
हेतुमदनित्यमव्यापि सक्रियमनेकमाश्रितं लिङ्गम्। | १० |