"लघुसिद्धान्तकौमुदी" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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पङ्क्तिः ४,०९९:
प्रत्ययस्थात्कात्पूर्वस्याकारस्येकारः स्यादापि स आप्सुपः परो न चेत्। गोपालिका। अश्वपालिका। सर्विका। कारिका। अतः किम् ? नौका। प्रत्ययस्थात्किम् ? शक्नोतीति शका। असुपः किम् ? बहुपरिव्राजका नगरी। (<i>सूर्याद्देवतायां चाब्वाच्य</i>ः)। सूर्यस्य स्त्री देवता सूर्या। देवतायां किम् ? (<i>सूर्यागस्त्ययोश्छे च ङ्यां च</i>)। यलोपः। सूरी - कुन्ती॑ मानुषीयम्॥<BR>
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<B>इन्द्रवरुणभवशर्वरुद्रमृडहिमारण्ययवयवनमातुलचार्याणामानुक्इन्द्रवरुणभवशर्वरुद्रमृडहिमारण्ययवयवनमातुलचार्याणामानुक्॥</B> (लसक_१२६६ = पा_४,१.४९) <BR>
एषामानुगागमः स्यात् ङीष् च। इन्द्रस्य स्त्री - इन्द्राणी। वरुणानी। भवानी। शर्वाणी। रुद्राणी। मृडानी। (<i>हिमारण्ययोर्महत्त्वे</i>)। महद्धिमं हिमानी। महदरण्यमरण्यानी। (<i>यवाद्दोषे</i>)। दुष्टो यवो यवानी। (<i>यवनाल्लिप्याम्</i>)। यवनानां लिपिर्यवनानी। (<i>मातुलोपाध्याययोरानुग्वा</i>)। मातुलानी, मातुली। उपाध्यायानी, उपाध्यायी। (<i>आचार्यादणत्वं च</i>)। आचार्यस्य स्त्री आचार्यानी। <i>(अर्यक्षत्रियाभ्यां वा स्वार्थे</i>), अर्याणी, अर्या। क्षत्रियाणी, क्षत्रिया॥<BR>
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