"प्रज्ञां-परिमित-हृदय-सूत्र" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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पङ्क्तिः १:
प्रज्ञां-परिमित-हृदय-सूत्र
|| नमः सर्वज्ञाय ||
आर्यावलोकितेश्वर बोधिसत्त्वो गम्भीरायां प्रज्ञांपारमितायां चर्यां चरमाणो व्यवलोकयति स्म|
पंच स्कन्धा:ताम्श्चा स्वभावशून्यान्पश्यति स्म ||
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